सिरमौर के समुदाय को मिला ट्राइबल का दर्जा
सिरमौर हिमाचल प्रदेश उत्तरी भारत का सबसे दक्षिणी जिला है. यह काफी हद तक पहाड़ी और ग्रामीण क्षेत्र है, इसकी 90% आबादी गांवों में रहती है. ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण पिछले 55 वर्षों अपने पहचान बनाने के लिए यहां के लोग संघर्ष कर रहे थे. हाटी समुदाय सिरमौर का एक ऐसा समुदाय है जो ‘अनुसूचित जनजाति’ की मांग कर रहा था। हाल ही में केंद्र सरकार ने समुदाय को एसटी का दर्जा दिया है. ऐसे में जानते है कि आखिर सरकार ने हिमाचल के हाटी समुदाय को एसटी में शामिल किया है वो कौन है?
एक जनजाति क्या है?
अनुसूचित जनजाति के रूप में एक समुदाय की विशिष्टता के लिए अपनाई जाने वाली कसौटी आदिम लक्षणों, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क की शर्म और पिछड़ेपन के संकेत हैं. यह मानदंड संविधान में वर्णित नहीं है, लेकिन अच्छी तरह से स्थापित हो गया है.
‘अनुसूचित जनजाति’ शब्द सबसे पहले भारत के संविधान में आया था. भारत के संविधान के अनुच्छेद 366 (25) ने अनुसूचित जनजातियों को “ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों या ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के कुछ हिस्सों या समूहों के रूप में परिभाषित किया है, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है”. अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों के विनिर्देशन के मामले में पालन की जाने वाली प्रक्रिया को निर्धारित करता है.
इसी तरह हिमाचल प्रदेश में भी कई प्रकार की जनजतीयां है जो अनुसूचित जनजाति के दर्जा पाने के लिए सरकार से मांग कर रही थी. इसे के चलते 14 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को एक संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी, जिसके माध्यम से हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र के हाटी समुदाय को अधिसूचित अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया है.
संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (तीसरा संशोधन) विधेयक 2022 के कानून बनने के बाद सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरी क्षेत्र में रहने वाले हाटी समुदाय के करीब 1.6 लाख लोगों को अनुसूचित जनजाति के लिये बनाई गई सरकार की विभिन्न योजनाओं का लाभ मिलेगा. केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में समुदाय के लोग 50 से अधिक वर्षों से एसटी सूची में शामिल होने की मांग कर रहे थे. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र में हाटी समुदाय को पहले ही आदिवासी का दर्जा दिया जा चुका है.
हाटी कौन हैं?
हाटी एक घनिष्ठ समुदाय हैं, जिन्होंने कस्बों में ‘हाट’ नामक छोटे बाजारों में घरेलू सब्जियां, फसल, मांस और ऊन आदि बेचने की अपनी परंपरा से अपना नाम प्राप्त किया . हाटी समुदाय, जिसके पुरुष आम तौर पर समारोहों के दौरान एक विशिष्ट सफेद टोपी पहनते हैं, सिरमौर से गिरि और टोंस नामक दो नदियों से कट जाता है. टोंस इसे उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र से विभाजित करता है. 1815 में जौनसार बावर के अलग होने तक उत्तराखंड के ट्रांस-गिरी क्षेत्र और जौनसार बावर में रहने वाले हाटी कभी सिरमौर की शाही संपत्ति का हिस्सा थे.
दो कुलों में समान परंपराएं हैं, और अंतर-विवाह आम बात है. स्थलाकृतिक नुकसान के कारण, कामरौ, संगरा और शिलिया क्षेत्रों में रहने वाले हाटी शिक्षा और रोजगार में पिछड़ गए हैं.
1967 से अब तक का सफर
समुदाय 1967 से जनजातीय दर्जे की मांग कर रहा था , जब उत्तराखंड के जौनसार बावर इलाके में रहने वाले लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया गया था, जिसकी सीमा सिरमौर जिले से लगती है. वर्षों से विभिन्न महा खुंबलियों में पारित प्रस्तावों के कारण आदिवासी दर्जे की उनकी मांग को बल मिला.
गिरिपार क्षेत्र में दुर्गम पहाड़ पर उत्तराखंड की सीमा से सटा एक छोटा सा गांव है शरली. बीच में टौंस नदी और सामने है उत्तराखंड की जोंसार बाबर क्षेत्र का सुमोग गांव. दोनों ही गांवों के लोगों की बोली, पहनावा, रीति-रिवाज, रहन-सहन, खान-पान, परंपराएं और जीवन स्तर एक जैसा है.
टौंस नदी के उस पार जोंसारा समुदाय को एसटी का दर्जा है और इस पार हाटी समुदाय जनजातीय दर्जे के लिए करीब 55 साल से संघर्ष कर रहा था, सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र की 127 पंचायतों में करीब पौने तीन लाख आबादी हाटी समुदाय की है.
चुनावी साल में हाटियों की पीड़ा पर मरहम
14 सितंबर को देश के इतिहास में एक नई संघर्ष की गाथा लिखी गई. दशकों के लंबी प्रतीक्षा और उत्सुकता के बाद गिरिपार क्षेत्र की मूल निवासी 14 उपजातियों के हाटी समुदाय को जनजाति का संवैधानिक अधिकार प्राप्त हुआ है. समुदाय को जनजातीय दर्जा देने की केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी दिलाकर भाजपा ने तुरुप का पता चला है.
जाहिर है भाजपा ने चुनावों को मध्य नजर रखते हुए ये कदम उठाया है. लोहा गरम देख भाजपा सरकार ने उस पर अपना हतौड़ा मार दिया है. ये कदम भाजपा के मिशन रिपीट के लिए काफी हद तक फयदेमंद साबित हो सकता है. वोट बैंक की राजनीति कैसे की जाती है ये भाजपा सरकार अच्छे से जानती है.