मुस्कान, खबरनाउ: हिमाचल प्रदेश जिसे देवभूमि भी कहा जाता है, जहां आज के आधुनिक दौर में भी परम्पराओं को निभाया जाता है. ऐसी ही एक परंपरा करसोग में बूढ़ी दिवाली को निभाने की चली आ रही है. जहां देर रात को देरची निकाली जाती है. जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीण मशालें लेकर क्षेत्र में सुख समृद्धि की कामना के लिए गांव की परिक्रमा करते है. इस अवसर पर देवता के भागी लोग भी शामिल होते है. इस दौरान दिवाली गीत गाए जाते व नृत्य किया जाता है. साथ ही देवता लोगों को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करते है. यह सदियों पुरानी परंपरा आज भी करसोग में उत्साह से साथ निभाई जाती है.
दिवाली के एक महीने बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने का पता चला
मान्यता है कि ग्रामीणों को दिवाली के एक माह बाद भगवान राम के अयोध्या वापस लौटने का पता चला था. तभी से करसोग में बूढ़ी दिवाली की पौराणिक परंपरा को निभाया जा रहा है. च्वासी क्षेत्र के समाज सेवी टीसी ठाकुर व कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव मंदिर देव थनाली के युवराज ठाकुर बताते हैं कि दीवाली के एक महीने बाद अमावस्या की रात को बूढी दिवाली का त्योहार हर्षोल्लास से मनाया जाता है.
मंदिरों में मनाई जाएगी बूढ़ी दिवाली
उपमंडल के तहत विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों ममलेश्वर महादेव मंदिर, च्वासी क्षेत्र के महोग, खन्योल च्वासी मंदिर व कांडी कौजौन ममलेश्वर महादेव देव थनाली मंदिर में सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए 23 और 24 नवंबर को बूढ़ी दिवाली मनाई जाएगी. 23 नवंबर की आधी रात को अपने अपने क्षेत्रों में ग्रामीण मंदिर में मशालें जलाकर लोकगीत और नृत्य कर गांव की परिक्रमा करेंगे. इसमें देवता के गुर सहित मंदिर के कारदार भी शामिल होंगे. इसके लिए मंदिरों में तैयारियां चल रही है. मंदिरों को सजाया जा रहा है.