चंडीगढ़: पीजीआई के बाहर पिछले 21 सालों से लंगर लगाने वाले जगदीश अहूजा का सोमवार को निधन हो गया। जगदीश अहूजा लंगर बाबा के नाम से जाने जाते थे। जगदीश अहूजा करीब पिछले 21 सालों से पीजीआई अस्पताल के बाहर लंगर सेवाएं दे रहे थे।
फल बेचकर शुरू किया था जीवनयापन
इन लंगर सेवाओं के लिए उन्होंने अपनी कई प्रॉपर्टी तक बेच दी थी। उनका कहना था कि लंगर सेवा करके उन्हें काफी सुकून मिलता है। पटियाला में उन्होंने गुड़ और फल बेचकर अपना जीवनयापन शुरू किया था।
कुछ ऐसा है “लंगर बाबा” के जीवन का सफर
वह 1956 में लगभग 21 साल की उम्र में चंडीगढ़ आ गए। उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था। यहां आकर उन्होंने एक फल की रेहड़ी किराए पर लेकर केले बेचना शुरू किया।
चंडीगढ़ में एक रेहड़ी से शुरुआत करने वाले लंगर बाबा के जीवन का सफर आसान नहीं था। आहूजा ने कड़े संघर्ष से चंडीगढ़ और आसपास काफी प्रॉपर्टी बनाई, लेकिन लंगर के लिए अपनी कोठी तक बेच दी। अहूजा को 2020 में राष्ट्रपति से पद्मश्री अवार्ड भी मिला था।वो रोजाना करीब 4 से 5 हजार लोगों को लंगर खिलाते थे।
चंडीगढ़ प्रशासन से थी ये मांग
कोरोना काल में भी प्रशासन के निर्देशों के कारण सिर्फ सात दिन पीजीआई के बाहर लंगर को रोकना पड़ा था, आहूजा की इच्छा थी कि वह चंडीगढ़ में जरुरतमंदों के लिए एक सराय का निर्माण करवा सकें, जिसके लिए उन्होंने चंडीगढ़ प्रशासन से जमीन देने की मांग की थी।
पीजीआई के बाहर लगने वाले पूरे लंगर की देखरेख खुद जगदीश अहूजा करते थे।